अपनी सभी कल्पनाओं को हकीकत में पूरा करने वाली अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला ने अतरिक्ष में कदम रख भारत को गौरवान्वित किया. हर किसी की चाह होती हैं कि वह एक-न-एक दिन ऐसी ही उचाईयों को छूएं, जिस पर सभी को उन पर नाज हों, उनके काम को लेकर और देश की इतनी बड़ी जीत के लिए. ताकि देश के साथ-साथ पूरी दनिया को उस पर गर्व हो. कल्पना चावला भी उन्ही में से एक हैं, जिन्होने भारत को दुनिया की नजरों में इतना सम्मान दिया, या फिर बात इस तरह कहे कि भारत के पास भी अपने हथियार हैं जिसके बल पर वे अपने को किसी से नीचा नही कह सकता.
कल्पना चावला का जन्म 8 जुलाई 1961 में हरियाणा के करनाल में हुआ. उनके पिता का नाम बनारसी लाल चावला और माता का नाम संज्योती हैं. उन्होने अपनी शिक्षा की शुरूआत करनाल के स्थानीय स्कूल से हासिल की. इसके बाद उन्होने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. 1984 में टेक्सास से इंजनियरिंग में मास्टर डिग्री प्राप्त की. इसके साथ ही उन्होने पीएचडी की भी उपाधि ली. इसके बाद वे 1988 में नासा में शामिल हुई. जहाँ पर उन्होने कई तरह के शोध किए. साल 1995 में कल्पना चावला पन्द्रहवें अंतरिक्ष समूह से जुड गयीं.
अपने एक वर्ष के प्रशिक्षण, मूल्यांकन और मेहनत के बाद कल्पना को रोबोटिक्स, अंतरिक्ष में विचरण से जुड़े तकनीकी विषयों पर काम करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गयी. उन्होने अपने प्रशिक्षण के दौरान एस्ट्रानॉट आफिस/रोबोटिक्स एवं कम्प्यूटर ब्रांच के लिए तकनीकी मुद्दों का दायित्व तथा 1996 नवम्बर में उन्हें मिशन स्पेशलिस्ट का भार सौंपा गया. 19 नवम्बर से 5 दिसम्बर 1997 तक वे एम.टी.एस 87 पर प्राइम रोबोटिक आर्म ऑपरेटर रही.
कोलंबिया स्पेस शटल में उड़ान के लिए कल्पना ने अपना आवेदन पात्र नासा भेजा. कोलंबिया की यह तेईसवीं उड़ान थी. इस यान-चालक दल में कल्पना अकेली महिला थी। उनके आलावा चार अमेरिकी, एक जापानी और एक यूक्रेनी यात्री थे। 19 नवंबर 1997 के दिन कल्पना ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए स्पेस शटल कोलंबिया से उड़ान भरी.अपनी पहली यात्रा के दौरान कल्पना ने अंतरिक्ष में 372 घंटे बिताए और पृथ्वी की 252 परिक्रमाँए की इसके बाद कल्पना 2003 में कोलंबिया यान से ही दूसरी बार अंतरिक्ष मिशन पर गई. लेकिन नासा और पूरी दुनिया के लिए दुखद दिन तब आया जब अंतरिक्ष यान में बैठीं कल्पना अपने 6 साथियों के साथ दर्दनाक घटना का शिकार हुईं. कल्पना की दूसरी यात्रा उनकी आखिरी यात्रा साबित हुई.कल्पना जेआरडी टाटा (जो भारत के अग्रणी पायलट और उद्योगपति थे) उनसे प्रभावित और प्रेरित थी आज सभी कल्पना की उचाईयों को देखते हुए, उनके हौसले की मजबूती का सम्मान कर सभी उनके जैसा ही अंतरिक्ष यात्री बनना चाहते हैं.
कल्पना चावला भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच न हो मगर अंतरिक्ष में दिलचस्पी लेने वाली हर बेटी कल्पना चावला बनना चाहती है. हर बेटी के मन में उड़नपरी के ख्वाब नज़र आते हैं फिर चाहें वो किसी भी क्षेत्र से जुड़ी हो, बस उन्हे अपने सपनों को पूरा करने के लिए चाहिए ‘हिम्मत और लगन’.