{ रंगमंच शान्ति और सामंजस्य की स्थापना में एक ताकतवर औज़ार है. वह मनोरंजन के साथ शिक्षा भी देता है. भारत में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटकों व मंडली से देश प्रेम तथा नवजागरण की चेतना ने तत्कालीन समाज में उद्भूत की, जो आज भी अविरल है. ‘अन्धेर नगरी’ जैसा नाटक कई बार मंचित होने के बाद भी उतना ही उत्साह देता है. कालिदास द्वारा रचित अभिज्ञान शाकुंतलम्, मोहन राकेश का आषाढ़ का एक दिन, धर्मवीर भारती का ‘अंधायुग’, विजय तेंदुलकर का ‘घासीराम कोतवाल’ श्रेष्ठ नाटकों की श्रेणी में हैं. भारत मे तरह-तरह के तमाशे होते हैं. सभी अपने राज्य के लोक गीत और अपने राज्य की संस्कृति को दर्शाते हैं. सभी राज्यों ने इस कला मे महारत हासिल की हैं क्योकि सभी राज्यों ने अपनी संसाधनों, लोक गीत और लोक कलाकार द्वारा अपनी इस प्रथा की शुरूआत की हैं और यह हमेशा से ही चलती आ रही हैं.}
हम में से कितने ही रंगमंच मे प्रस्तुत की जा रही कहानी को देखते हैं, उनके नाटकों मे, अभिनेताओं द्वारा किए जा रहे अभिनय में, हम एक दशा निर्धारित करते हैं रंगमंच की कला को देखते हुए. इसके साथ ही अगर हमें प्रस्तुत की जा रही कहनी भा जाती हैं तो हमें उस नाटक को करने वाले कलाकार को अच्छा अभिनय करने वाला साबित कर देते हैं.
रंगमंच हमेशा से ही अपने नाटक द्वारा कोई संदेश देने की कोशिश करता हैं पर हम अभिनय को सिर्फ एक मनोरंजन के माध्यम से ही देखते हैं न की एक संदेश देने के माध्यम से, जिसका रंगमंच हमेशा से ही प्रयास करता हैं. संदेश देने के साथ ही रंगमंच शाति और अपने-अपने देश की संस्कृति देने का प्रयास करता हैं, जिस भी देश में उसको प्रस्तुत किया जाता हैं. रंगमंच को हम सभी ने देखा हैं, लेकिन हममे से कोई नही जानता कि दुनिया में रंगमंच का जन्म कब हुआ, उसकी स्थपना किसने की. वैसे तो विश्व रंगमंच की स्थापना 1961 में इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट द्वारा की गई थी. रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा भी इस दिन को विशेष दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है. पहले अंतराष्ट्रीय रंगमंच का संदेश साल 1962 में फ्रांस की जीन काक्टे ने दिया था. साल 2002 में यह संदेश भारत के प्रसिद्ध रंगकर्मी गिरीश कर्नाड द्वारा दिया गया था.
हम सभी का रंगमंच से सीध नाता हैं, हम आईने में अपने आपको देखते हुए ना जाने कितने तरह के हाव-भाव को व्यक्त करते हैं. जो किसी भी अभिनेता से कम नही होती. मतलब यह कि हममें भी रंगमंच के वही स्वभाव हैं जो किसी एक कलाकार में होते हैं. इसके साथ ही रंगमंच भी एक ऐसी ही परीक्षा हैं जिसमें कलाकार को कई रूप धारण करने पड़ते हैं. उसको अपनी कला के माध्यम से कई कला को जनता के सामने प्रस्तुत करना पड़ता हैं.
रंगमंच शान्ति और सामंजस्य की स्थापना में एक ताकतवर औज़ार है. वह मनोरंजन के साथ शिक्षा भी देता है. भारत में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटकों व मंडली से देश प्रेम तथा नवजागरण की चेतना ने तत्कालीन समाज में उद्भूत की, जो आज भी अविरल है. ‘अन्धेर नगरी’ जैसा नाटक कई बार मंचित होने के बाद भी उतना ही उत्साह देता है. कालिदास द्वारा रचित अभिज्ञान शाकुंतलम्, मोहन राकेश का आषाढ़ का एक दिन, धर्मवीर भारती का ‘अंधायुग’, विजय तेंदुलकर का ‘घासीराम कोतवाल’ श्रेष्ठ नाटकों की श्रेणी में हैं. भारत मे तरह-तरह के तमाशे होते हैं. सभी अपने राज्य के लोक गीत और अपने राज्य की संस्कृति को दर्शाते हैं. सभी राज्यों ने इस कला मे महारत हासिल की हैं क्योकि सभी राज्यों ने अपनी संसाधनों, लोक गीत और लोक कलाकार द्वारा अपनी इस प्रथा की शुरूआत की हैं और यह हमेशा से ही चलती आ रही हैं.
भारत में रंगमंच दर्शाया तो जाता हैं लेकिन हर राज्य में इसको अलग-अलग नामों के साथ जाना जाता हैं, जैसे उत्तर भारत में रामलीला, बंगाल और उड़ीसा में जात्रा, महाराष्ट्र में तमाशा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और पंजाब में नौटंकी, तमिलनाडु में थेरुबुट्टू और गुजरात में भवई आदि राज्यों में रंगमंच को अपने राज्य की परंपरा और संस्कृति के अनुसार उसको लोगों के सामने दर्शाया जाता हैं.