पिछले कुछ सालों से बिहार की शिक्षा प्रणाली पर लगातार सवाल उठ रहे हैं।खासकर कला संकाय में। दो सालों के टॉपर रूबी और गणेश ने जिस तरह से देशभर में बिहार की मिट्टी पलीद की है, उससे बिहार के किसी छात्र को अन्यराज्यों में खुद को बिहार बोर्ड से शिक्षा प्राप्त कहने में काफी शर्म आती होगी। मैं कॉलेज के दिनों में खुद भी यह झेल चुका हूं। कैसे दिल्ली और यूपी के छात्र बिहार बोर्ड का मजाक उड़ाते हैं। लेकिन क्या इस पूरे प्रकरण के दोषी सिर्फ रूबी और गणेश ही हैं, इसकी तह में जाने की जरूरत है। जब बिहार बोर्ड का रिजल्ट प्रकाशित होता है दिल्ली की मीडिया कैमरा लेकर टॉपर की तलाश में निकल पड़ती है। टॉपर की तलाश कर उसकी इंटरव्यू भी कर डालती है। इससे एक चीज तो है कि जो गड़बड़िया है सामने आ रही है। इससे पहले कई मेधावान छात्रों का हक मारा होगा ऐसे टॉपरों ने। शुक्र है टीवी मीडिया का, जिसने ऐसे टॉपरों की कलई खोल दी। लेकिन अचानक से यह सब कैसे हो सकता है। कोई टॉप करता है, मीडिया वहां पहुंचती है और उसका इंटरव्यू लेती है। यह एक नई प्रथा की ओर हम बढ़ रहे हैं। यह अच्छा भी है और बूरा भी। लेकिन मीडिया सिर्फ बिहार बोर्ड के कला टॉपर की इंटरव्यू ही हमेशा क्यों लेती है। क्या दूसरे राज्यों के छात्र कला में टॉप नहीं करते। या फिर मीडिया को पता होता है कि वह छात्र मेधा के दम पर टॉप हुए हैं। आमतौर पर होता यह कि जब भी कोई किसी परीक्षा में टॉप होता है तो मीडिया उसके संघर्षों का जिक्र करती है। उसने कैसे किन परिस्थितियों में पढ़ाई की है उस पर फोकस करती है, लेकिन बिहार खासकर कला संकाय के साथ मीडिया का रवैया ठीक इसके उल्ट है। क्या सिर्फ कला टॉपर छात्र ही उनकी प्राथमिकता हैं। कभी विज्ञान या वाणिज्य के छात्रों की तरफ ये रुख क्यों नहीं करते हैं। कला में भी कई ऐसे छात्र अपनी मेधा के दम पर टॉप टेन में जगह बनाए होंगे, उन पर मीडिया का फोकस क्यों नहीं होता है। बार-बार टॉपर पे ही चर्चा क्यों आकर रुक जाती है। कभी सुपर थ्री वालों की बात भी क्यों नहीं होती। टॉप टेन की बात क्यों नहीं होती।
मध्य प्रदेश के व्यापम से बड़ा घोटाला शायद ही देश ने कभी देखा हो। यह एक ऐसा मेधा घोटाला था जिसने 50 से ज्यादा लोगों की जान ले ली। कई छात्रों का भविष्य चौपट हो गया। यह अब तक का सबसे बड़ा घोटाला भी रहा है। जिन-जिन लोगों का तार इससे जुड़ा इन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी। लेकिन शुरुआती कुछ दिनों के बाद व्यापम मुद्दा ऐसे दब गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। कई राजनेता से लेकर बड़े-बड़े लोगों को जेल भी जाना पड़ा, लेकिन फिर वे तुरंत ही बाहर आ गए। यहां तक की मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबियों का नाम भी इस घोटाला से जुड़ा, लेकिन अबतक कुछ ऐसा नहीं हुआ जिससे आश्वस्त हुआ जा सके कि इस तरह के घोटाले दोबारा नहीं होंगे। लेकिन मीडिया और सरकार ने इन मुद्दों को हमेशा के लिए दफन कर दिया। कैमरे के सामने बोलने में अच्छे-अच्छों की गला सूख जाती है। जब एक साथ कई कैमरा सामने हो और आपको पूरा देश देख रहा हो तो बोलने में बड़े-बड़ों को भी सोचना पड़ जाता है। यहां तक की कई बार कैमरे और माइक के सामने बड़े-बड़े नेता और स्टार भी गच्चे खा जाते हैं। खैर मुद्दे पर आते हैं। बिहार में कला टॉपर छात्र जिस तरह से मिट्टी पलीद कर रहे हैं, इसके लिए वे अकेले कुसूरवार नहीं हैं। इसके पीछे कुछ रसूखदार लोगों का हाथ है, जो अबतक सरकार और कानून की नजरों में बचते आ रहे हैं। इसमें हो सकता है वीक्षक का भी हाथ हो। जो भी हो लेकिन इससे हंसाई तो सूबे की सरकार की हीं हो रही है, और इसका दुर्गामी परिणाम बिहार के छात्रों को आगे की शिक्षा प्राप्त करने या नौकरी प्राप्त करने में भुगतना पड़ेगा। कोई भी बड़ी संस्थान बिहार के छात्रों को प्रवेश देने से पहले सौ बार सोचेगी। वहीं नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जाने वाले छात्रों पर भी इसका असर पड़ेगा। अगर किसी संस्थान में उन्हें नामांकन मिल भी जाता है तो दूसरे राज्यों के छात्र उसे हकारत भरी नजरों से देखेंगे। उनके मन में हमेशा बिहार टॉपर रूबी और गणेश दौड़ते रहेंगे, जिन्हें मीडिया के कैमरों ने दिखाया है। कई बार मेरे साथ भी ऐसा हुआ है। बिहार के छात्रों का दूसरे जगहों के छात्र मजाक उड़ाते हैं। ऐसे टॉपरों के आगे सालों की कड़ी मेहनत दम तोड़ दे रही है। छात्र कैसे किन परिस्थितियों में अपना घर-बार छोड़कर पटना, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर और भागलपुर जैसी बड़े शहरों का रूख कर रहे हैं। ताकि वहां अच्छे शिक्षकों से दीक्षा प्राप्त कर सकें। दिन-रात जी तोड़ मेहनत करने वाली प्रतिभाएं ऐसे टॉपरों के सामने पानी भरते नजर आ रही है। अखबार की सुर्खियों से लेकर टीवी के कैमरों तक में इन्ही की चर्चा होती दिख रही है। ये कोई इतना बड़ा नेटवर्क भी नहीं है जिन तक सरकार नहीं पहुंच सकती। सोचने वाली बात तो यह है कि सूबे की नीतीश सरकार ने अपनी पिछली जग हंसाइयों से कोई सबक नहीं ली है, वर्ना रूबी के बाद कोई गणेश फिर से टॉपर नहीं होता। ऐसे मेरिट घोटालों से सूबे की साख में भी गिरावट आई है। सरकार पर विपक्ष तो हमलावर है हीं। लेकिन मुख्यमंत्री अभी तक कान में तेल डाले सोये हैं। जैसे उन्हें पता ही नहीं हो कि राज्य में क्या चल रहा है। सरकार को आलोचना तो सिर्फ सोशल मीडिया पर झेलनी पड़ रही है। लेकिन बाहर रह रहे छात्र को ऐसी समस्याओं से हमेशा दो-चार होना पड़ रहा है। कई बार मेरी भी सोशल साइट्स पर दूसरे राज्यों के दोस्तों से इस मुद्दे पर बहस हो जाती है। वे हमेशा बिहार की शिक्षा प्रणाली का माखौल उड़ाते हैं। जिससे मन में कुंठा भर आती है। बार-बार इस तरह के घोटालों से हम किस ओर जा रहे हैं। अगर ऐसे टॉपरों को कभी कहीं प्रवेश मिल भी गया तो क्या भविष्य में उनसे बेहतर परिणाम की उम्मीद की जा सकती है। ऐसे में राज्य का शिक्षा स्तर दिन ब दिन चौपट होता जाएगा।
( लेखक मो तौहिद आलम पत्रकार एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)