{स्वास्थ्य सेवाओं में उन्नति के कारण आज का बुजुर्ग दीर्घ जीवन जीता है, वह भी उसके लिए कष्टदायक ही साबित हो रहा है जब परिवार में समाज में उसकी आवश्यकता ही नहीं है तो वह अपने जीवन को एक भार स्वरूप जीता है. जबकि पहले अक्सर बुजुर्ग साठ,पैसंठ तक आते आते दुनिया छोड़ देता था.अतः आज बुजुर्ग को अपने निरर्थक जीवन जीने को मजबूर नही होना पड़ता है.}
गत पांच दशकों में आये सामाजिक, आर्थिक बदलाव अभूतपूर्व हैं.जितना बड़ा परिवर्तन इन दशकों में देखने को मिला है, शायद ही पहले कभी इतनी तीव्र गति से सब कुछ बदला हो. आज का बुजुर्ग इतने बदलावों देखकर हतप्रभ है, और वह नयी पीढ़ी को इसे बयां भी नहीं कर सकता. नयी सामाजिक व्यवस्था से सबसे अधिक दुष्प्रभाव का शिकार हुआ है तो वह है आज का बुजुर्ग अथवा वरिष्ठ नागरिक.
- सबसे पहले आर्थिक स्थिति को समझना होगा निरंतर बढ़ने वाली महंगाई ने बुजुर्गों की अपनी कमाई से बची खुची बचत को प्रभाव हीन कर दिया है, न तो यह पूँजी उसके शेष जीवन के निर्वहन के लिए पर्याप्त है और न ही उससे प्राप्त होने वाले ब्याज से भरण पोषण संभव है.अक्सर वृद्धावस्था में बुजुर्गों का अपना आर्थिक स्रोत ख़त्म ही हो जाता है,कुछ सरकारी नौकरी से सेवा निवृत या अपनी संपत्ति से होने वाली आय प्राप्त करने वाले बुजुर्गों को छोड़ कर, अधिकतर बुजुर्ग आर्थिक रूप से पराश्रित हो चुके होते हैं.जब बुजुर्ग अपने आत्मसम्मान को दांव पर लगा देता है, उसकी मजबूरी हो जाती है की वह आर्थिक आवश्यकताओं के लिए अपनी संतान के ऊपर निर्भर रहे.जो बुजुर्ग शारीरिक रूप से आश्रित हैं उनकी व्यथा का बखान करना शब्दों के माध्यम से संभव नहीं है.
- आज से मात्र तीस वर्ष पूर्व बुजुर्ग को ज्ञान का भंडार माना जाता था और घर में बुजुर्ग का होना संतान के आत्मविश्वास बनाये रखने में विशेष भूमिका निभाता था. परन्तु आज बुजुर्ग ज्ञान का भंडार नहीं रह गया है, बल्कि वह तो परम्पराओं का पुतला बन कर रहा गया है. नयी पीढ़ी को सर्वाधिक ज्ञान गूगल बाबा से मिल जाता है वह भी नवीनतम तथ्यों पर आधारित एवं विश्वसनीय होता है. जिसमें गलत एवं संदेहास्पद सूचनाओं की सम्भावना न के बराबर होती है. अतः आज का युवा बुजुर्गों से कहीं अधिक विद्वान् है और उसके पास सटीक जानकारियों का संग्रह है. इस प्रकार से घर के बुजुर्ग का ज्ञान और तजुर्बा महत्वहीन हो गया है और परिवार में उसका मान सम्मान समाप्त हो चुका है.उसकी आवश्यकता भी समाप्त हो गयी है.
- स्वास्थ्य सेवाओं में उन्नति के कारण आज का बुजुर्ग दीर्घ जीवन जीता है, वह भी उसके लिए कष्टदायक ही साबित हो रहा है जब परिवार में समाज में उसकी आवश्यकता ही नहीं है तो वह अपने जीवन को एक भार स्वरूप जीता है. जबकि पहले अक्सर बुजुर्ग साठ,पैसंठ तक आते आते दुनिया छोड़ देता था.अतः आज बुजुर्ग को अपने निरर्थक जीवन जीने को मजबूर नही होना पड़ता है.
- आज के बुजुर्ग के पूर्व की अपेक्षा अच्छे स्वास्थ्य होने के बावजूद कार्य के अभावों के साथ जीने को मजबूर होता है. जब एक युवा(जो सर्वाधिक उर्जावान अवस्था में होता है) को ही रोजगार नहीं मिल् पाता तो एक अपेक्षाकृत कम क्षमता के अभ्यर्थी को रोजगार कौन देगा, वैसे भी बुजुर्ग को कार्य करने के लिए अपने जीवन की हैसियत को देखना भी उसकी मजबूरी होती है.अनेक बार घर के अन्य परिजनों संतानों की हैसियत को देख कर भी उसे रोजगार ढूँढने की मजबूरी होती है. जिस कारण उसे उसके मनमाफिक रोजगार नहीं मिल पाता. खाली रहना उसके लिए कम कष्टकारी नहीं होता.उसके लिए समय व्यतीत करना एक चुनौती बन जाती है जिसे आज का युवा समझ भी नहीं पाता.(SA-207B)
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