कठिन परिश्रम से जलता है सफलता का चिराग
‘ सफलता ‘ ये एक ऐसा मूल्यवान शब्द है जिसका एक महत्वपूर्ण व सर्वोपरि स्थान हर इंसान की जिंदगी मे होता है । सफलता इंसान के कठिन परिश्रम का परिणाम होती है । एक व्यक्ति ने अपने सम्पूर्ण जीवन मे जितने भी कठिन परिश्रम किये है उन सभी का परिचय उनकी सफलता ही देती है । या ये कहे कि एकमात्र सफलता ही है जो कि एक व्यक्ति के कठिन परिश्रम का परिचय देती है। एक व्यक्ति अपने जीवन के शुरुआती दौर से ही परिश्रम की सीढ़ी चढ़ना शुरू कर देता है । एक व्यक्ति के जीवन मे उसके कठिन परिश्रम करने का आरंभ तभी से हो जाता है जबसे वह व्यक्ति अपने शिक्षा युग मे प्रवेश करता है । शिक्षा का शुरुआती दौर थोड़ा आसान होता है लेकिन धीरे-धीरे समय जैसे-जैसे अपनी गति पकड़ता है वैसे-वैसे शिक्षा का यह दौर बढ़ता चला जाता है । उदाहरण के लिए यदि कोई छात्र दसवीं की पढ़ाई कर रहा है और वह उसके लिए प्रतिदिन पाँच घंटे का समय देता है और जैसे-जैसे वह उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर होगा वैसे-वैसे अपनी पढ़ाई के लिए उसका समय भी बढ़ेगा । कहने का तात्पर्य यह है कि समय के साथ साथ सफलता प्राप्त करने हेतु कठिन परिश्रम अधिक से अधिक करना पड़ेगा । जैसा कि एक कहावत है कि ‘कठिन परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।’ इस बात मे कोई भी दो राय नही है कि बिना कठिन परिश्रम किए सफलता प्राप्त नही हो सकती है । एक ऐसा व्यक्ति जो अपना वह कीमती व मूल्यवान समय जो उसे कठिन परिश्रम करने मे व्यतीत करना चाहिए था और वह उस मूल्यवान समय को मनोरंजन व फिजूल के कामो मे बर्बाद कर दे वह व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ अपने भविष्य से खिलवाड़ के अतिरिक्त और कुछ भी नही कर रहा है । जो व्यक्ति अपनी पढ़ाई पूरे मन व एकाग्रता से करता है वही व्यक्ति अपने जीवन मे सफलता हासिल कर पाता है । ये बात बिलकुल सच है कि सफलता का चिराम एकमात्र कठिन परिश्रम रूपी घी के माध्यम से ही प्रज्वलित हो सकता है ।
अमन सिंह (सोशल एक्टिविस्ट) बरेली
इंसानियत सबसे पहला व सर्वोपरि धर्म
हम लोग जिस परिवेश व समाज मे रहकर अपना जीवन व्यतीत करते है उस समाज मे अनेक प्रकार के धर्म के अनुयायी व उन अनेक धर्मो को मानने वाले लोग रहते है । कोई व्यक्ति हिंदू धर्म को मानता है तो कोई मुस्लिम धर्म को । समाज मे रहने वाले लोग अपने अपने धर्मो के नियम व परंपराओं का पालन अपने अपने ढ़ंग से करते है । प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसका धर्म ही श्रेष्ठ व सर्वोपरि होता है । लेकिन अपने धर्म को श्रेष्ठ व सर्वोपरि कहने से पहले वह व्यक्ति शायद यह बात भूल जाता है कि उसके धर्म से भी लाख गुना बढ़कर एक और धर्म है जो कि इंसानियत का । इंसानियत यानी की मानवता । मानवता का बखान शब्दो मे करना न के बराबर है। जैसे कि मैने कही पढ़ा था कि ‘मानवता का मानवता से जो नाता है वह किसी स्वार्थ का नाता नही है । ‘ एकमात्र इंसानियत ही तो है जो कि आज भी किसी धर्म की श्रेणी मे आने को मौहताज नही है । मानवता ही एकमात्र वह कर्तव्य रूपी धर्म है जिसको निभाने मे हर व्यक्ति स्वयं को लिए गौरवशाली समझता है ।
उदाहरण के लिए एक व्यक्ति जो कि किसी दुर्घटना मे चोटिल हो जाता है और मदद के लिए पुकार लगाता है और ऐसे मे कोई व्यक्ति मानवता के धर्म को मानकर उसकी सहायता कर दे तो शायद उस समय मानवता का धर्म उस व्यक्ति के धर्म से कई गुना ज्यादा अहमियत रखता है।मानवता के नाते यदि कोई व्यक्ति किसी की सहायता करता है तो इस बात मे कोई दो राय नही है कि उस व्यक्ति को अवश्य ही पुण्य की प्राप्ति होगी। यदि हम किसी एेसे व्यक्ति की सहायता करते है जिसको सच मे हमारी सहायता की आवश्यकता है तो एेसा करने से बड़ा पुण्य का काम कोई और नहीं हो सकता है। अकसर लोग पुण्य प्राप्त करने के लक्षय को मन मे रखकर सैकड़ों मील दूर तीर्थ यात्रा करने जाते है लेकिन मेरा एेसा मानना है कि यदि हम सैकड़ो मील दूर तीर्थ स्थल पर जाने से पहले किसी जरूरतमंद व असहाय की इंसानियत के नाते सहायता करते है तो शायद हमे ऐसा करने के लिए तीर्थ यात्रा करने से भी ज्यादा पुण्य प्राप्त होगा । वर्तमान समय मे जब किसी जरूरतमंद की सहायता करने की बात आती है तो अकसर हमने लोगो को ऐसा कहते सुना होगा कि हमारा तो इससे कोई रिश्ता भी नही है तो फिर हम इसकी सहायता क्यो करे लेकिन ऐसा कहने से पहले उन लोगो को यह जरूर सोचना चाहिए कि ऐसा कोई व्यक्ति नही है जो कि जन्म से ही जरूरतमंद है और एेसा कोई व्यक्ति नही है जो कि कभी जरूरतमंद नही हो सकता है। इसीलिए हमे मानवता के नाते प्रत्येक जरूरतमंद की मदद करनी चाहिए। मेरा ऐसा दावा है कि एक बार आप किसी जरूरतमंद की इंसानियत के नाते सहायता करके देखे आपको एक अदभुत आनंद की प्राप्ति होगी।
अमन सिंह ( सोशल एक्टिविस्ट) बरेली
सच्चाई की राह पर चलना कठिन
जिस प्रकार सोना आग मे तपकर अपने शुद्ध व सही होने का प्रमाण देता है ठीक उसी प्रकार एक व्यक्ति का खरापन तब ही सिद्ध हो सकता है जब वह समाज के सामने अपने सच्चेपन का प्रमाण दे सके। जिस प्रकार सोना आग मे तपकर अपनी शुद्धता का परिचय देकर एक मूल्यवान धातु का दर्जा प्राप्त कर सकता है ठीक उसी प्रकार सत्याचरण का प्रमाण देकर एक व्यक्ति समाज का विश्वास प्राप्त कर एक श्रेष्ठ व्यक्ति का दर्जा प्राप्त कर सकता है। जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते है ठीक उसी प्रकार एक व्यक्ति के सामने दो प्रकार की राह यानि की मार्ग होते है । एक मार्ग होता है सच्चाई का और दूसरा मार्ग होता है झूठ का । दोनो ही मार्गों पर चलने का अपना अलग अलग सिद्धांत व पद्धति है । सच्चाई व झूठ मे से यदि हम बात सच्चाई की करे तो सच्चाई की राह पर चलना कठिन है। सच्चाई की राह पर अकसर मुसाफिर कम होते है। सच्चाई मानव जीवन की एक सबसे शुभ और कल्याणकारी नीति है। इस बात मे कोई दो राय नही है कि सच्चाई की राह पर चलने पर प्रारंभ मे कुछ कठिनाई हो सकती है लेकिन आगे चलकर हमको इसका लाभ होता है। उदाहरण के लिए जैसे एक किसान को अन्न की कृषि करने मे प्रारंभ मे थोड़ी कठिनाई उठानी पड़ती है और अपनी फसल के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है लेकिन जब बाद मे वह कृषि फलीभूत होती है तो घर धन-धान्य से भर देती है ठीक उसी प्रकार सच्चाई की राह पर चलने के प्रारंभ मे थोड़ा त्याग , बलिदान और धैर्य अवश्य लगता है किन्तु जब वह फलित होती है तो लोक से लेकर परलोक तक मानव जीवन को खुशियों से भर देती है। सच्चाई की राह मानव को सुख व समृद्धि के शिखर तक ले जाती है। सच्चाई की राह मनुष्य के सम्मान , प्रतिष्ठा और आत्म गौरव के लिए एक कवच के समान होती है। सत्य प्रिय व्यक्ति मिथ्यावादियो की तरह न तो कल्पना करता है और न ही अनहोनी कामनाएँ करता है। क्योंकि वह इस बात से भलीभाँति परिचित होता है कि सच्चाई की राह पर चलना कठिन तो है लेकिन सच्चाई हमेशा के लिए साथ होती है और झूठ का साथ क्षणिक मात्र होता है।
अमन सिंह (सोशल एक्टिविस्ट) बरेली