6,हवन का प्रयोजन कितना महत्त्व पूर्ण ;जब हवन का आयोजन होता है ,उस समय विभिन्न मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है ,जिनका महत्त् ऊपर बताया गया है .उसके पश्चात् हवन कुंड में देसी घी ,कपूर ,हवन सामग्रीतथा आम की लकड़ी प्रज्वलित की जाती है , सभी भक्त उसके निकट बैठे होते हैं ,इन वस्तुओं के प्रज्वलन से भक्तों को शुद्ध ओक्सिजन का सेवन करने का अवसर प्राप्त होता है .जो हमारे स्वास्थ्य रक्षा और रोगों के निदान के लिए महत्त्व पूर्ण होता है ,हवन की वायु शुद्ध होती है ,जिससे वातावरण में व्याप्त जीवाणु और विषाणु नष्ट हो जाते हैं ,और हमें संक्रमण से बचाता है .यह सभी प्रकार के लाभ वैज्ञानिक शोधों से सिद्ध हो चुके हैं .साथ ही मानसिक .सामाजिक .और धार्मिक लाभ अलग से मिलते हैं .अतः आज भी हवन का आयोजन पूर्णतयः प्रासंगिक है
7,गंगा का महत्त्व ;वैसे तो किसी भी नदी में स्नान का अर्थ है हम प्रकृति के अधिक समीप हो कर स्नान कर रहे हैं , क्योंकि हमारे शरीर की संरचना पंचतत्वों से निर्मित मानी गयी है ,यानि अग्नि ,जल ,वायु ,पृथ्वी और आकाश .अतः जब हम किसी नदी या तालाब में स्नान करते हैं ,तो खुले आकाश के नीचे , पृथ्वी अर्थात मिटटी ,वायु जल और सूर्य अर्थात अग्नि सभी में संपर्क के हमारा शरीर होता है .इस प्रकार नदी या तालाब में स्नान करने का अर्थ है, अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य लाभ करना परन्तु यदि कोई व्यक्ति गंगा नदी में नहाता है , उसे मिलने वाला लाभ कई गुना बढ़ जाता है .क्योंकि वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध हो चुका है ,की गंगा जल में कुछ ऐसे केमिकल सम्मिलित हैं जो मानव सहित सभी प्राणियों के लिए अमृत का कार्य करते हैं ,जो हमें अनेक त्वचा रोगों से बचाते हैं और पाचन शक्ति दुरुस्त रखने में मदद करते हैं . यद्यपि वर्तमान समय में मानव विकास के साथ साथसभी नदियों में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है उनमे औद्योगिक कचरा एवं मानव मळ मूत्र और न जाने क्या क्या डाला जा रहा है . जिससे सभी नदियों के साथ साथ गंगा नदी भी प्रभावित हुयी है और जल का रंग भी बदल चुका है ,आज उसमे स्नान करना संक्रमण को आमंत्रित करना है .अब गंगा में स्नान वरदान नहीं अभिशाप बन चुका है .अतः यह आवश्यक है गंगा ही नहीं सभी नदियों को प्रदूषण से बचाया जाय ,ताकि सभी नदियों में स्नान करना पूर्व की भांति लाभकारी हो सके , जो अब से पचास वर्ष पहले था .
8,पूजा अर्चना का महत्त्व ;
पूजा अर्चना अपनी अपनी आस्था का ,विश्वास का प्रश्न है ,और जो जिस भी इष्ट देव को मानता है उसी की पूजा अर्चना करता है . यहाँ पर यह विचार का विषय नहीं है ,यहाँ पर पूजा से चिकित्सा विज्ञानं के अनुसार होने वाले लाभ से अवगत कराना है .पूजा ध्यान ,जप ये सब मन को केन्द्रित करने में मदद करते हैं .उससे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है .और मन के विकारों से मुक्ति पाने में सहायता मिलती है .व्यक्ति नियमित जीवन जीने को अग्रसर होता है. और स्वास्थ्य के लिए हितकारी होता है इसके अतिरिक्त सामाजिक लाभ भी प्राप्त होते हैं .अनेक अवसरों पर सामूहिक पूजा के आयोजन किये जाते हैं ,जिससे आपसी मेल जोल व् सहयोग को बढ़ावा मिलता है ,और आम व्यक्ति के गलत कार्यों पर अंकुश भी लगता है
.9,उपास्य देव में विश्वास का महत्त्व ;किसी भी धर्म में ,किसी भी इष्ट देव में विश्वास , मानसिक रूप से कवच का कम करता है . धर्म चाहे कोई भी हो जिस इष्ट देव में आपका विश्वास है वह आपका हर समय सहारा बना रहता है .जीवन में अनेक बार उलझन भरे क्षणों में आपका इष्ट देव में विशवास आपको हिम्मत प्रदान करता है और संतोष मिलता है .यही हिम्मत आपको गंभीर क्षणों के दौरान विचलित होने से आपकी रक्षा करती है .सिर्फ यह सोच कर की आपके इष्ट देव की यही इच्छा थी,भयंकर स्थिति में भी मानसिक संतुलन बना रहता है .इसी प्रकार किसी गंभीर प्रश्न पर अनिर्णय की स्थिति में इष्ट देव काआदेश समझ कर निर्णय लेने में सफल हो जाते हैं.इस विश्वास के साथ की इष्ट देव सब कुछ ठीक करेंगे .अतः हमारे पूर्वजों ने जनता को ऐसा समाधान सुझा दिया जो मानव को शारीरिक व् मानसिक असंतुलन से तो बचाता ही है ,साथ ही गलत राह पर जाने से भी रोकता है , और समाज को विकृत होने से बचाता है .साम्प्रदायिक द्वेष इसका एक नकारात्मक पहलू भी है जो हमें विभिन्न धार्मिक दंगों के रूप में सहन करना पड़ता है .जो सिर्फ अपने इष्ट देव के प्रति कट्टर विश्वास और दूसरे धर्मों के प्रति असहनशील होने का परिणाम है .
10,रमजान का महीना–मुस्लिम धर्म में रमजान का महीना एक पाक महीना माना गया है ,और प्रत्येक मुस्लिम को रोजा रखना अनिवार्य होता है .आज भी इस वैज्ञानिक युग में इसका महत्त्व कम नहीं माना जा सकता . यह ऐसा धार्मिक कार्य है जिसका मानव शरीर पर सार्थक प्रभाव होता है .रोजे एक चक्र के रूप में पूरे वर्ष में कभी भी पड़ सकते हैं ,अर्थात गर्मी सर्दी ,बरसात सभी मौसम में बारी बारी से रमजान का महीना पड़ता है .इस प्रकार से रोजेदार को प्रत्येक मौसम में रोजे रखने का अनुभव होता है ,जिससे उसकी सहन शक्ति बढती है .पूरे माह उपवास रख कर पाचन क्रिया को व्यवस्थित करने का अवसर प्राप्त होता है अतः रोजे रखने वाले को धार्मिक संतुष्टि के साथ साथ स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है .अलग अलग मौसम में रोजे पड़ने के कारण हर मौसम में उपवास रखने से सहन शक्ति में बढ़ोतरी होती है