{बढती आबादी भी देश के विकास के लिए रोड़ा बन चुकी है राजनेताओं के लिए इस दिशा में कदम उठा पाना असंभव हो रहा है और यह समस्या देश के लिए घातक हो चुकी है. देश के विकास पर प्रश्नचिन्ह बन चुकी है. देश बढती जनसख्या के दुष्चक्र में फंस गया है. जिसका समाधान आम जनता की जागरूकता से ही संभव है. देश के प्रत्येक नागरिक को अपने समाज और अपने देश के प्रति अपने कर्तव्य को समझते हुए परिवार को सीमित रखना होगा और ताकि स्वयं अपने परिवार को और देश को समृद्ध बनाया जा सके.} देश की सुरसा की भांति बढती आबादी ने स्वतंत्रता के पश्चात् देश की प्रगति में सर्वाधिक प्रभावित किया है. देश की सुरसा की भांति बढती जनसँख्या जो आजादी के समय मात्र चौतीस करोड़ पचास लाख थी, आज एक सौ इक्कीस करोड़ हो चुकी है. भारत का जनसँख्या घनत्व 2011 जनगणना के अनुसार 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर थी, जबकि चीन में 2015 की गणना के अनुसार में 142 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है.अर्थात हमारे देश में जनसँख्या घनत्व चीन को काफी पीछे छोड़ चुका है. बढती आबादी ने अडसठ वर्षों में हुई सारी प्रगति को प्रभाव हीन कर दिया है. देश में खाद्य उत्पादन जो 1950-51 में 50.83 मिलियन टन था 2013-14 में बढ़ कर 263 मिलियन टन तक पहुँच गया.इतना बड़ा उत्पादन इसलिए संभव हो पाया क्योंकि कृषि भूमि क्षेत्रफल 1960 में 133 मिलियन हेक्टयर था 2010 में बढ़ कर 142 मिलियम हेक्टयर हो गया और प्रति हेक्टेयर उपज जो 1960 में 700 किलो प्रति हक्टेयर थी 2010 में वैज्ञानिक संसाधनों का अधिकतम प्रयोग करने के कारण बढ़ कर 1900 किलो प्रति हेक्टेयर हो गयी अर्थात उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग किये जाने के पश्चात् ही यह संभव हो पाया. अब और अधिक वृद्धि होने की सम्भावना नहीं हो सकती. खाद्य उत्पादन में इतनी वृद्धि होने के बावजूद,आर्थिक असन्तुलन के कारण आज भी देश की बहुत बड़ी जनसँख्या को एक समय का भोजन ही नसीब होता है.वर्तमान समय में देश में पर्याप्त खाद्य भण्डार होने के कारण, खाद्य तेलों के अतिरिक्त अन्य खाद्य पदार्थ को विदेश से मांगने की आवश्यकता नहीं पड़ती. परन्तु यदि जनसँख्या वृद्धि नहीं रूकती है तो अवश्य ही हमें खाद्यान्न भी विदेशों से मंगा कर ही जनता का पेट भरना पड़ेगा. खाद्यान्न के अतिरिक्त अन्य सभी उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में आशातीत वृद्धि होने के बावजूद देश की सारी जनता के लिए सारी वस्तुएं,सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पायीं हैं. बढती आबादी के कारण प्रत्येक युवा को रोजगार दे पाना भी असंभव हो रहा है. बेरोजगारी के कारण भी गरीबी को बढ़ावा मिलता है,देश का विकास प्रभावित होता है. अधिक आबादी के कारण, सड़कों पर ट्रैफिक नित्य प्रति बढ़ रहा है जिसके कारण सड़कों पर जाम लगता है गंतव्य पर पहुंचना कष्टदायक होता जाता है. बढती आबादी के कारण प्रदूषण की मात्रा भी भयावह स्थति तक पहुँच जाती है.जिससे अनेक प्रकार की बीमारियों को निमंत्रण मिलता है इसका प्रभाव अधिक आबादी वाले शहरों पर अधिक पड़ता है.अच्छे स्वास्थ्य के बिना विकास का कोई महत्व नहीं रह जाता.
खाद्य पदार्थों की उत्पादन से अधिक मांग व्यापारियों को मिलावट जैसे घिनोने अपराधों के लिए प्रेरित करती है,जिससे जनता का स्वास्थ्य दावं पर लग जाता है.और अनेक बार तो मिलावट का शिकार अकाल मृत्यु तक पहुच जाता है.
प्रत्येक प्राकृतिक स्रोत वन हों या खानें या खेती बाड़ी के लिए, आवास के लिए जमीन सब की एक सीमा होती है,इनका उत्पादन नहीं होता.जितनी जमीन धरती पर है वही रहेगी.खानों में प्राकृतिक रूप से जितना खनिज उपलब्ध है, उसकी एक सीमा है उसके समाप्त होने के पश्चात् खनिज कहीं से आने वाले नहीं हैं. यदि वह सीमा पार हो जाती है तो स्रोत समाप्त हो जाते हैं. जिससे भविष्य मे अभाव का माहौल बनना निश्चित है, अतः एक सीमा तक ही प्रकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है. आज वनों की संख्या अपना वजूद खोते जा रहे हैं.आवास की समस्या हल करते करते और उद्योगों के लिए जमीन उपलब्ध कराते कराते और अन्य विकास कार्यों के लिए आवश्यक जमीन उपलब्ध कराने के कारण खेती के लिए जमीन ख़त्म होती जा रही है. दूसरी ओर बढती आबादी के लिए और अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता है जो निरंतर बढती जा रही है. अतः बढती आबादी को रोकना भावी पीढ़ी की सुरक्षा के लिए आवश्यक है.धरती पर जितने लोग भी रहें अपनी अवश्यकताओं की पूर्ती कर सकें. बढती आबादी को रोकने के लिए हम दो और हमारे दो की विचार धारा को अपनाना आवश्यक है.ताकि जितने लोग दुनिया में रहे सब कुशल से रहें.बिना अभावों के जी सकें, सभी वैज्ञानिक उपलब्धियों का पूरा पूरा ले पायें.
आजादी के पश्चात् सर्वप्रथम परिवार नियोजन के सम्बन्ध में इंदिरा सरकार द्वारा गंभीरता से प्रयास किये गए थे. प्रयास तो सही समय पर सही कदम था परन्तु उसको लागू किये जाने का तरीका गलत था, अतः एक अच्छा प्रयास फेल हो गया. क्योंकि परिवार नियोजन के लिए जनता को जागरूक कर उसे परिवार नियोजन के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए था, अनेक प्रोत्साहन देकर इस कार्य के लिए जनता का समर्थन जुटाना चाहिए था. परन्तु इंदिरा सरकार ने देश पर आपातकाल थोप कर जबरन अपने इरादों को लागू करने का प्रयास किया, नौकर शाही के अत्याचारों के कारण जनता में रोष उत्पन्न हो गया,जनता के विरोध के कारण सरकार की नीतियों को पलीता लग गया और बाद में इंदिरा सरकार के पतन का कारण भी बना. इंदिरा गाँधी को भारी पराजय का मुहं देखना पड़ा. उसके बाद किसी भी सरकार की हिम्मत नहीं हो पायी की वह परिवार नियोजन की योजना भी लागू कर सके. एक और सबसे बड़ा कारण यह भी है परिवार नियोजन का महत्त्व देश का जागृत और शिक्षित हिदू तो समझता है, परन्तु अशिक्षित हिन्दू और मुसलमान परिवार नियोजन के महत्त्व को नहीं समझ रहा जिसके कारण मुस्लिम आबादी के बढ़ने की तीव्रता हिन्दुओं से कही अधिक हो गयी है. देश में मुस्लिम की आबादी तेजी से बढ़ना हिन्दुओं के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है, अतः कही न कही वे न चाहते हुए भी परिवार नियोजन को अपनाने से हिचकते दिखाई देने लगे हैं.कुल मिला कर देश के लिए सभी देश वासियों को समान रूप से सोचना आवश्यक है. आपके बच्चों के जीवन की गुणवत्ता सीमित परिवार के रहते ही संभव है,और हम सभी का, देश का, विकास संभव हो सकता है. आगे आने वाले समय की भयावहता से बचा जा सकता है.
अतः बढती आबादी भी देश के विकास के लिए रोड़ा बन चुकी है राजनेताओं के लिए इस दिशा में कदम उठा पाना असंभव हो रहा है और यह समस्या देश के लिए घातक हो चुकी है. देश के विकास पर प्रश्नचिन्ह बन चुकी है. देश बढती जनसख्या के दुष्चक्र में फंस गया है. जिसका समाधान आम जनता की जागरूकता से ही संभव है. देश के प्रत्येक नागरिक को अपने समाज और अपने देश के प्रति अपने कर्तव्य को समझते हुए परिवार को सीमित रखना होगा और ताकि स्वयं अपने परिवार को और देश को समृद्ध बनाया जा सके.