हमारे देश में चुनाव प्रणाली मूलतः दोष पूर्ण है जो बहुमत के सिद्धांत का पालन नहीं करती. कहा यह जाता है की हमारे देश में जनता का शासन है, और जनता बहुमत से अपने प्रतिनिधि को चुनकर सदन में भेजती है और चुने हुए प्रतिनिधि देश के लिए सरकार का गठन करते हैं. जबकि ऐसा नहीं होता अक्सर सत्तारूढ़ पार्टी को कुल मतदाताओं का अधिकतम तीस प्रतिशत वोट मिलता है, अर्थात सत्तर प्रतिशत जनता का वोट जीतने वाली पार्टी के विरुद्ध होता है और यही स्थिति जीतने वाले उम्मीदवार की होती है जो कभी कभी तो कुल पड़े मतों का बीस प्रतिशत मत प्राप्त कर उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है, क्योंकि शेष मत विभिन्न उम्मीदवारों में बंट जाते हैं. क्योंकि जीतने वाले उम्मीदवार को सबसे अधिक वोट मिले होते हैं, अतः उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है. अब यदि क्षेत्र के कुल मतदाताओं की संख्या के अनुसार जीतने वाले उम्मीदवार को प्राप्त वोटो का प्रतिशत निकालें तो यह प्रतिशत और भी कम हो जाता है. क्योंकि मतदान कभी भी सत्तर प्रतिशत से अधिक नहीं हो पाता अर्थात जीतने वाली सत्तारूढ़ पार्टी को कुल मतदाताओं की संख्या का मात्र इक्कीस प्रतिशत(कुल पड़े सत्तर प्रतिशत वोट का तीस प्रतिशत=21%) मत प्राप्त होता है. अतः बीस प्रतिशत जनता के समर्थन से सत्ता में आई पार्टी जनता का प्रतिनिधत्व करने की अधिकारी कैसे हो गयी? जनता का बहुमत प्राप्त सरकार कैसे हो गयी? क्या यह लोकतंत्र और जन भावनाओं का मजाक नहीं हो गया ? जिस पार्टी या उम्मीदवार के समर्थन में मात्र बीस या इक्कीस प्रतिशत जनता ने अपना समर्थन दिया हो, वह जनभावनाओं को कैसे समझ पायेगा. यही व्यवस्था आजादी के पश्चात् गत सत्तर वर्षों से चली आ रही है. कांग्रेस ने देश पर अधिकतम समय शासन किया, वह इसी दोषपूर्ण प्रणाली के अंतर्गत संभव हो पाया अन्यथा कांग्रेस जनता का बहुमत कब का खो चुकी थी.
आज जब मोदी सरकार भी इसी दोष पूर्ण प्रणाली के अनुसार बन गयी तो कांग्रेस को चुनाव प्रणाली में खामी स्पष्ट दिखाई दे रही है. यही कारण है सभी विपक्षी पार्टियाँ अपनी राजनैतिक दुश्मनी भूल कर एक जुट हो रही हैं, और अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हो रही हैं.(एक उदहारण–देश में इमरजेंसी के बाद सभी विपक्षी दल एकत्र होकर इंदिरा की तानाशाही को समाप्त करने में सफल हुए थे) वर्तमान में बिहार के चुनावो में महागठबंधन को मिली जीत इस बात का प्रमाण भी है.सारे विरोधी दल हमारी दोष पूर्ण चुनाव प्रणाली का लाभ लेने को आतुर हो रहे हैं, और शायद कुछ हद तक उन्हें सफलता भी मिल जाय.यद्यपि इस प्रकार से बने गठबंधन का जीतना देश हित में नहीं हो सकता विभिन्न विचारों वाले दल होने के कारण उनके द्वारा स्थिर सरकार काबिज हो सकेगी यह पूर्णतयः संदिग्ध है.
[संभावित विकल्प व्यवस्था–यदि मतदान में क्षेत्र के कुल मतदाताओं का बहुमत प्राप्त करना संभव न हो तो कुल डाले गए मतों के आधार पर बहुमत प्राप्त प्रताय्शी को सफल उम्मीदवार घोषित किया जाय.उसके लिए प्रत्येक मतदाता से दो स्तरीय मतदान का प्रावधान किया जाय अर्थात एक मत प्रथम वरीयता के लिए और एक द्वितीय वरीयता के लिए मतदान कराया जाय. जब प्रत्याशी को कुल डाले गए वोटों के आधे से अधिक मत न मिले हों तो, द्वतीय वरीयता के लिए डाले गए वोटो की संख्या के आधे मत की गणना कर प्रत्याशी को प्राप्त मतों में जोड़ दिया जाय और फिर बहुमत की गणना की जाय.इस प्रकार जनता को एक वाजिब प्रातिनिधि प्राप्त हो सकेगा. और जन भावनाओं का सम्मान हो सकेगा ]
जब चुने हुए प्रतिनिधियों को सदन में बहुमत की आवश्यकता होती है,और बहुमत जुटा लेने वाले को ही सरकार के गठन का अधिकार होता है, तो प्राथमिक स्तर पर चुनाव में ऐसा क्यों नहीं होता? सिर्फ कुल मतदाताओं के आधे से अधिक मतों को प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को ही जन प्रतिनिधि घोषित किया जाना चाहिए. इसके लिए चुनाव प्रक्रिया में किस प्रकार के बदलाव की व्यवस्था होनी चाहिए, यह हमारे कानूनविदों का विषय है,वे ही नियम बना पाने में सक्षम हैं. अतः आवश्यकता है हमें चुनाव प्रक्रिया में अमूल चूल परिवर्तन लाने की ताकि जनता के बहुमत प्राप्त प्रतिनिधि या पार्टी को ही सत्ता तक पहुँचने का अवसर प्राप्त हो सके और जनप्रतिनिधि जनआकांक्षाओं को समझ कर उसके कल्याण के लिए यथा शक्ति कार्य कर सके.तब ही वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना संभव है. देश का कल्याण संभव है.
लेखक —–सत्य शील अग्रवाल