गत कुछ दशकों में आये तीव्र सामाजिक बदलावके कारण सामाजिक ताना बाना एक दम से छिन्न भिन्न होने लगा है. पहले जहाँ मेट्रोशहरों में लोग रिज़र्व रहना पसंद करते थे. आज यह स्थिति छोटे छोटे शहरों से लेकर गावों तकबनने लगी है. मोहल्ले वालों से किसी को कोई मतलब नहीं रह गया है, न ही पडोसी में कोई रूचिरह गयी है. अब तो स्थिति यहाँ तक पहुँच गयी है हम अपने पडोसी से परिचितभी नहीं है. यदि कोई हम से पडोसी के नाम या उसके व्यवसाय के बारे मेंपूछे तो हमारे लिए यह बताना भी आसान नहीं रह गया है. इस प्रकार से हमारा सामाजिकदाएरा सिमटता जा रहा है.जिसका मुख्य कारण है बढ़ते भौतिक वाद के कारण बढ़ता आर्थिकभेद भाव या बढती असमानता है. प्रत्येक व्यक्ति पडोसी से कोई भी व्यव्हार करने सेपूर्व उसकी आर्थिक स्थिति, उसकी पद स्थिति या राजनैतिक स्थिति की जानकारी प्राप्तकरना आवश्यक मानता है. वह अपने से उच्च स्तर के व्यक्ति या समान स्तरीय व्यक्ति केसाथ व्यवहार बनाये रखना चाहता है. वह अपने निम्न स्तर के व्यक्ति से बात करना अपनेसमय को ख़राब करना समझता है. उसके लिए मानवीय मूल्य कोई मायने नहीं रखते उसके लिए उसका स्वार्थ या सामने वाले का भौतिक स्तरअधिक महत्व पूर्ण है.
सीमित सामाजिक दाएरे के साथ साथ सभी रिश्ते नाते भी अब भौतिक वाद का शिकार होते जा रहे हैं. अब हर रिश्ते को धन या पद की ऊंचाईयों के अनुसार तय किया जाता है. अब प्रत्येक रिश्ते में प्यार या लगाव के स्थान पर धन दौलत, सफलता असफलता ने ले लिया है. जब कोई रिश्तेदार से मिलता है और यदि उसे अपने से अधिक सफल पाता है, उसे कोई ख़ुशी नहीं होती बल्कि वह उसे इर्ष्या का भाव रखने लगता है. वह उसकी सफलता को उसका परिश्रम और उसकी लगन के परिणाम के रूप में देखने को तैयार नहीं है. वह सिर्फ उसके नसीब को उसकी उन्नति का जिम्मेदार मानता और अपने नसीब को कोसता है. परन्तु यदि उसका कोई रिश्तेदार असफल है या स्वयं के मुकाबले कम ऊंचाईयां प्राप्त कर सका है तो उसे बड़े ही उपेक्षित रूप से देखता है जैसे उसकी योग्यता ही उसकी निम्न स्तर के लिए जिम्मेदार है और वह स्वयं को बहुत ही महनती और योग्य मान कर उसका अपमान करने से भी नहीं झिझकता. उसको अनेक प्रकार की नसीहतें भी देना अपना हक़ समझने लगता है,जो कुछ उसने प्राप्त किया है उसके लिए वह अपनी योग्यता दर्शाने का प्रयास करता है. उसे लगता है जो भी उसे सफलता मिली है वह सिर्फ उसकी योग्यता का ही परिणाम है. उसकी सफलता के पीछे कितने लोगों का सहयोग मिला है वह भूल जाता है. जिन्होंने उसे इस स्थिति तक पहुँचाने में अपना त्याग किया उसे याद करना या उनका कृतज्ञ होना उसे अशोभनीय लगता है . वह सभी पुरानी यादों को भूल कर आगे बढ़ जाना चाहता है. उसके लिए अतीत को याद करना अपने वर्तमान को ख़राब करना मानता है.
वर्तमान समाज में बढ़ते अवसाद का मुख्य कारण भी भौतिक वादी होड़ है.जब कोई व्यक्ति वांछित सफलता प्राप्त नहीं कर पाता या सफलता के पश्चात् नीचे गिरने लगता है तो वह डिप्रेशन या अवसाद में चला जाता है.उसके अन्दर पलने वाली हीन भावना या समाज का सामना न कर पाने की सामर्थ्य के अभाव में वह मानसिक रूप से उद्वेलित हो जाता है जो उसे अवसाद का शिकार बना देता है.जब भी अवसाद अधिक गहरा हो जाता है या अधिक निराश हो जाता है तो वह मौत को गले लगाने की स्थिति तक भी पहुँच जाता है.यही कारण है जैसे जैसे मानव विकास की गति बढ़ रही है आत्महत्याओं का ग्राफ भी तेजी से बढ़ रहा है. आत्महत्याओं के मुख्य कारणों में सामाजिक ताना बाना का छिन्न भिन्न होना है.सामाजिक जुडाव के अभाव में प्रत्येक व्यक्ति अपनी लडाई स्वयं लड़ रहा है.अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को सांत्वना देने वाला कोई नहीं मिलता और उसकी निराशा उसे आत्महत्या तक ले जाती है.वह अपने जीवन को भारी दबाव में जीने को मजबूर दिखाई देता है.उसे अपना जीवन व्यर्थ लगने लगता है.
आपसी रिश्ते नाते एवं संबंधो के अभाव में जीने की मजबूरी मानव विकास का दुखद पहलू है.जिसे समाज के बुद्धिजीवियों को गंभीरता से लेना होगा,समाधान खोजा होगा अन्यथा विकास करना बेमाने हो जायगा,अभिशाप बन जायेगा.(SA-233B)