गत कुछ वर्षों से मॉब लिंचिंग की घटनाएँ अचानक से बढ़ गयी हैं. मॉब लिंचिंग अर्थात कोई भी व्यक्ति समूह किसी एक व्यक्ति पर कोई आरोप लगाकर उसे तुरंत अपने आक्रोश का शिकार बना देता है, अक्सर ऐसी घटनाओं में शिकार व्यक्ति की मौत हो जाती है. इस प्रकार के अपराध को मॉब लिंचिंग की संज्ञा दी जाती है. इस प्रकार की घटनाएँ आपसी रंजिश के कारण, गौ रक्षा के नाम पर, धर्म के नाम पर, राजनीति में बदले की भावना के कारण या कोई अन्य छोटे मोटे विवाद के कारण अस्तित्व में आ रही हैं. सभी केसों में समूह या भीड़ ने कानून अपने हाथ में लिया है. लोकतंत्र का स्थान भीड़ तंत्र ने ले लिया है.जिसे भी कभी भी उचित नहीं माना जा सकता है.यह सरासर मानवीय अधिकारों का हनन है,सभ्य समाज पर कलंक है, देश की न्याय व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती है, स्थानीय प्रशासन की असफलता है.
इस तरह की घटनाएँ देश को अराजकता की ओर ले जा रही हैं. इनको रोकने के लिए सभी संभव उपाय किये जाने आवश्यक हैं. साथ ही यह भी विचारणीय प्रश्न है आखिर ऐसे अपराधों के पीछे व्यक्ति विशेष, समूह,या भीड़ की मानसिकता क्या है? प्रत्येक व्यक्ति आज कानून अपने हाथ में लेने को क्यों उतावला हो रहा है, वह इतना आक्रोश में क्यों है? आम आदमी की सहन शक्ति क्यों समाप्त होती जा रही है? क्यों उसे हिंसा का सहारा लेना पड़ रहा है? हिंसा करने की हिम्मत कर पा रहा है. भीड़ की मानसिकता एक दम नहीं बदल गयी है आम आदमी हिंसा की ओर ऐसे ही नहीं मुखरित हो रहा है. कुछ न कुछ गंभीर कारण हैं इस मानसिकता के पीछे.जिसका अध्ययन किया जाना आवश्यक है, निष्कर्ष में निकलने वाले कारणों का समाधान खोजना आज की आवश्यकता है.
विचार करने योग्य मुख्य कारण;
1,आजादी के पश्चात् अस्तित्व में आयीं सभी सरकारें न्याय वयवस्था को पटरी पर लाने में नाकामयाब रही हैं.साधारण से मुकदमें में भी वादी को वर्षों न्याय पाने के लिए भटकना पड़ता है. कुछ केसों के अंतिम निपटारे होने तक दस से बीस वर्ष का समय लग जाता है. अतः अपराधी को देर से सजा मिलने का अर्थ है,पीड़ित के साथ अन्याय होना. केसों के निपटारा में देरी के कारण आम व्यक्ति में आक्रोश पनपता है, दूसरी ओर अपराधी के हौंसले बढ़ते जाते हैं. गुंडे को गुंडागर्दी करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है वह अपने शिकार या गवाहों को और अधिक दबाव में ले लेता है. अपने विरुद्ध सबूत मिटाने में सफल हो जाता है, अंततः वह या तो अदालत से सजा पाने से बच जाता है या फिर अपराध की गंभीरता से बहुत कम सजा पाकर बरी हो जाता है. जबकि अपराध का शिकार व्यक्ति जीवन भर तनाव में जीने को मजबूर होता है.
2,पुलिस में व्याप्त भ्रष्टचार, कार्य के प्रति निष्क्रियता के कारण अपराधियों को पनाह मिलती है और अपराधी निडर होकर अपने अपराध को अंजाम देता है. आम नागरिक इन अपराधियों के दबाव में जीने को मजबूर होता है. पुलिस के नकारापन के कारण आम नागरिक को अदालत से न्याय पाने का अवसर भी नहीं मिल पाता. परन्तु यह भी कटु सत्य है अदालत से न्याय पाने के लिए भी वादी को धक्के खाने को ही मिलते हैं. तारीख पर तारीख ही उसे नसीब में मिलती हैं न्याय नहीं. जिससे आम आदमी का न्याय पालिका में विश्वास डगमगा जाता है.
3,हमारी न्याय व्यवस्था में गवाह की सुरक्षा की व्यवस्था नहीं होती, अतः गवाही देने के लिए कोई भी आगे बढ़ने की कोशिश नहीं करता, जिसे गवाह बनना पड़ता है, उसे अपराधी से मिले दबाव के कारण वह सच्चाई उजागर नहीं कर पाता और केस कमजोर होने या पार्यप्त सबूतों के अभाव में अपराधी सजा से बरी हो जाता है.
4,निचली अदालतों में करोड़ों की संख्या में केस पेंडिंग पड़े है जिनके निस्तारण में दशकों का समय लगना लाजिमी है. केसों की भारी संख्या को देखते हुए नए जजों की नियुक्ति समय की आवश्यकता है.इसी प्रकार से हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में भी लाखों केस पेंडिंग पड़े रहते हैं जिनके एक समय सीमा में निस्तारण की व्यवस्था भी आवश्यक है.
5.हमारी न्याय पालिका की न्याय व्यवस्था गुलामी वाली चली आ रही है.अतः न्यायधीश की गतिविधियों पर कोई भी सवाल खड़े नहीं कर सकता. जिससे अदालत की अवमानना की सम्भावना हो जाती है,और अदालत की अवमानना दंडनीय है. अतः न्यायालयों के क्रियाकलापों पर कोई ऊँगली उठाने की हिम्मत नहीं कर पाता.न्यायपालिका एवं उसके न्यायाधीश ही उस पर नियंत्रण कर सकते हैं. न्यायिक अधिकारियों को भी समझना चाहिए अब वे एक आजाद देश के नागरिक हैं जो लोकतंत्र से चलता है अतः न्यायिक सेवाएं देना उनका भी राष्ट्रीय कर्तव्य है.जिन वादी और प्रतिवादियों के बारे में आपको फैसला लेना है वे इस देश के मालिक भी हैं. समय पर न्याय प्रदान कर जनता में असंतोष को खत्म करना आपकी जिम्मेदारी है.
6,लोकतंत्र में सरकारों का चुनाव जनता के मतदान से होता है.इस प्रक्रिया में हारे हुए नेता अपने प्रतिद्वंद्वी को द्वेषवश हिंसा का शिकार बनाते हैं और मोब लिंचिंग का सहारा लेकर अपने गुनाहों से बचने का प्रयास करते हैं. यह भी एक कारण हो सकता है इस प्रकार की मोब लिंचिंग की घटनाओं के पीछे.
न्याय पालिका में अंधाधुंध छुट्टियों की व्यवस्था है. जब हमारे प्रधान मंत्री इतने बड़े पद पर बैठ कर भी वर्ष में 365 दिन बिना कोई छुट्टी लिए कार्य कर सकते हैं और वह भी दिन के अट्ठारह घंटे. तो फिर न्यायधीश कार्य की अधिकता के रहते अदालत को अधिक समय क्यों नहीं दे सकते. वे वर्ष में 3०० दिन तो कार्य कर ही सकते हैं. कार्य समय में बढ़ोतरी कर अधिक से अधिक केसों का निपटारा क्यों नही कर सकते. वीक एंड को घटा कर छः दिन किया जा सकता है क्या न्याय पालिका देश हित में युद्ध स्तर पर अपने पेंडिंग केसों को निपटने की जिम्मेदारी नहीं ले सकती? क्या न्यायधीश इस देश के नागरिक नहीं होते? क्या उनकी देश प्रति को जिम्मेदारी नहीं है? सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में तीन या पांच जज एक केस की सुनवाई करते हैं. क्या सभी केसों में पेनल बैठना आवश्यक है? कुछ अति महत्व पूर्ण केसों को छोड़ यदि सभी केसों को एक न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ दिया जाय तो अधिक केसों का निपटारा हो सकता है. न्यायपालिका के लिए विशाल पेंडिंग केसों को शीघ्र से शीघ्र निपटाने की कोई इच्छा शक्ति नहीं दिखाई देती. न्याय पालिका अर्थात न्यायाधीशों के कार्य समय पर कोई नियंत्रण नहीं होता.
हमारी न्याय व्यवस्था की कमजोरी के कारण ही आम जनता स्वयं जज बनकर दंड देने को उतावली होने लगी है. इस रोष की परिणति मोबलिंचिंग में होती दीख रही है.(SA-246C)
नमस्कार सर
बहुत दिन बाद आपका लेख पढ़ने का मौका मिला बहुत अच्छा लगा बहुत ही सही तरीके से आपने आज कल होनी वाली ज्यादातर घटनाओ को सही तरीके से बयान किया है जिसके आप बहुत बहुत बधाई के पात्र है ,आज वाकई जरूरत है सिस्टम को बदल जाने की हम अपने पयारे हिंदुस्तान को तभी विश्व मे बहुत बड़ी ताकत बना पाएंगे जब जब हम अपने घरेलू रूप से अपनी कानून व्यवस्था को सही तरीके से चला पाए और हमारी राजनीतिक दल अपने अधिकारों का ओर प्रशासन अपने कानून का सही तरीके से बिना कोई भेदभाव किए बिना किसी के दबाव में आये काम करे जरूरत है एक इच्छा1 सकती कि आप जैसे बहुत से लोगो की जरूरत है जो हमारे अंधे ओर बहरे ओर लालची लोगो को शायद कुछ शर्म महसूस कर दे
जय हिंद
Naseem saifi
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नसीम भाई,तुम्हारे द्वारा की गयी सराहना एवं हौसला अफजाही के लिए आभार व्यक्त करता हूँ.
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आशा करता हूँ भविष्य में भी अपने विचारों से हमें अवगत कराते रहोगे,धन्यवाद
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